सुना है!!
सुना है ठंडी हवा की लेहरो में मिट्टी की खुशबु रेहती थी, अब तो ना वो ठंडी हवा नसीब हुई, ना ही मिट्टी की खुशबु.. रेह गयी है तो सिर्फ कड़ी धूप, गड्ढों वाले रस्ते और उनपे झुंजता हुआ बेजान आदमी! सुना है नीला आसमान चूमके गाता था ये ग़ालिब, और लोगो मे प्यार देख के खुशी से झूमता भी था. नीला आसमान? है ना, प्यार भी है! लेकिन फर्क सिर्फ इतना है के नीला आसमान अब इन लंबी इमारतो और गाड़ियों के धुए में मानो चुप सा गया है, इनके बीच में ढूंढना पड़ता है उसे. और प्यार है पैसो के लिए. अब तो पैसों के लिए मानो बाकी लोगोंको तो भूल सा गया हे ये इंसान. लोग क्या जनाब, ये अपने भाई को पहचान ले तब भी काफी है! सुना है सुबह सवेरे चिड़िया शोर मचा के सबको उठा देती थी, उसे अपने काम के लिए जो जाना पड़ता था. और शामको, सब काम खत्म करके, घर जाते वक़्त फिरसे इसका वही शोर कानो मे शेहद घोल देता था. शायद उसका शेहद रास नहीं आया, या फिर उसके शोर की कदर ना रही हमे जो हमने उसे इन सड़को से ही दूर कर दिया. इतना दूर के अब वो अपना बस्ता कही और जाके बसा रही हे और अगर यहा 1-2 दिन के लिए आ भी गयी, तब भी जनाब अब हम उसे