शाम!
ये शामे भी अजीब होती है, पहले तरह तरह के रंगों मे हमे गुमशुदा होने पर मजबूर करती है और धीरे धीरे इन्हीं सारे रंगो को खुद मे ऐसे समेट लेती है के पता ही नहीं चलता| ये शाम अगर कलाकार होती तो बस हरे रंग के लिए तरसती| लेकिन फिर इस जगह से मुझे हरा रंग भी खूब इतराता दिखाई दे रहा है, उन पेड़ों पर| यह पेड़ और यह शाम पूरी कोशिश कर रहे है साथ मे घुलमिल जाने की| या शायद कोई साजिश है इनकी, मुझे ईन वादियों मे गुमशुदा करने की| क्या ये पूरा दिन मेरी पूरी जिंदगी मुझे दिखा रहा है? पहले कड़ी धूप मे पूरा दिन सुलगते रहो फिर जाके ही शाम की ठंडाहत, पेड़ों की सरसराहट और रात का चैन तुम्हें नसीब होगा!
लेकिन अगर मेरी शाम और मेरी रात, दोनों भी मुझसे मुकर जाए और मेरे पास बस ये कड़ी धूप बचे तो? तो क्या फिर भी ये दिन मुझे उतना ही हसीन लगेगा?
अगर ईन हरे-भरे पेड़ की जगह मुझे मेरे आगे सिर्फ पतझड़ दिखाई दे, तो क्या फिर भी ये दिन मुझे उतना ही रंगीन लगेगा?
शायद नहीं, शायद वो दोनों तुमसे रूठ कर चले जाए और बस यह कड़ी धूप ही तुम्हारे हिस्से मे आए| शायद ये पेड़ अपने पत्ते गिराने लगे और तुम्हें बस पतझड़ और काँटे दिखाई दे| हाँ, जिन्दगी थोड़ी मुश्किल होगी उस वक़्त, लेकिन कल का सवेरा भी तो आना बाकी है, वो कैसे भाग पायेगा तुमसे| जिंदगी मे खालीपन भी लगेगा, लेकिन बसंत की बहार आना भी तो बाकी है, वो केसे खुदको रोक लगाएगा|
तो क्या पता, ईन सुलगती शामों की तरह जिंदगी भी सुलझने के बजह उलझ जाए? या फिर ऐसा हो के जिंदगी भी ईन शामों की तरह रंगीन रात मे तबदील हो जाये और बेहद हसीन हो जाए, बिल्कुल उस चांद की तरह! और अगर यह दोनों भी ना हो तो, तो उस खूबसूरत सुबह का इन्तेज़ार करना| वो सुबह जो सवेरे के साथ साथ एक नई उम्मीद की किरण भी अपने साथ लेके आए और फिरसे तुम्हारे आसमान मे रंगों को बिखेर दे| हाँ थोड़ी देर लगेगी उसे पहुचते पहुचते, लेकिन तुम रुकना उसके लिए| क्योंकि तुम्हारी ही तरह वो भी इन्तेज़ार कर रही है, तुमपे अपना प्यार बरसाने के लिए|
Comments
Post a Comment